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Thursday, September 23, 2010

KhwaaboN kii dunyaa ko jab jalte huye deKhaa

ख्वाबों की दुनिया को जब जलते हुए देखा
हर ख्वाब को मैने तिल तिल मरते हुए देखा

हो गई आदत अब तो अंधेरों मे जीने की
मुहब्बत का सूरज भी ढलते हुए देखा

क्या पाया क्या खोया न पता दिल को मेरे यारों
खुद के अरमां को दफ़न जो करते हुए देखा

लाखों थे बहाए आँसू मेरे घाव पर जिसने
नफ़ज़-ए-वापसी मे उसको ही हंसते हुए देखा

बीतें कल की यादों से खुद को नहीं निकाला फिर
जब सच की कड्वाहट को बढ्ते हुए देखा

हालत देख मेरी अक्सर महफ़िल कहे मुझ से
क्या शब को सुबहा से कभी मिलते हुए देखा?

खुद का गम महफ़िल में मैने सुनाया तो
सब के हाथों को मैने मलते हुए देखा

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